Saturday, February 29, 2020
सम्बलपुर का क्रांतिवीर सुरेन्द्र साय
क्रान्तिवीर गोपीमोहन साहा
Wednesday, February 26, 2020
चंद्रशेखर आजाद, जो सदा आजाद रहे*
Tuesday, February 25, 2020
हिन्दी और हिन्दुत्व प्रेमी वीर सावरकर
26 फरवरी/पुण्य-तिथि
*हिन्दी और हिन्दुत्व प्रेमी वीर सावरकर*
वीर विनायक दामोदर सावरकर दो आजन्म कारावास की सजा पाकर कालेपानी नामक कुख्यात अन्दमान की सेल्युलर जेल में बन्द थे। वहाँ पूरे भारत से तरह-तरह के अपराधों में सजा पाकर आये बन्दी भी थे। सावरकर उनमें सर्वाधिक शिक्षित थे। वे कोल्हू पेरना, नारियल की रस्सी बँटना जैसे सभी कठोर कार्य करते थे। इसके बाद भी उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं।
भारत की एकात्मता के लिए हिन्दी की उपयोगिता समझकर उन्होंने खाली समय में बन्दियों को हिन्दी पढ़ाना प्रारम्भ किया। उन्होंने अधिकांश बन्दियों को एक ईश्वर, एक आत्मा, एक देश तथा एक सम्पर्क भाषा के लिए सहमत कर लिया। उनके प्रयास से अधिकांश बन्दियों ने प्राथमिक हिन्दी सीख ली और वे छोटी-छोटी पुस्तकें पढ़ने लगे।
अब सावरकर जी ने उन्हें रामायण, महाभारत, गीता जैसे बड़े धर्मग्रन्थ पढ़ने को प्रेरित किया। उनके प्रयत्नों से जेल में एक छोटा पुस्तकालय भी स्थापित हो गया। इसके लिए बन्दियों ने ही अपनी जेब से पैसा देकर ‘पुस्तक कोष’ बनाया था।
जेल में बन्दियों द्वारा निकाले गये तेल, उसकी खली-बिनौले तथा नारियल की रस्सी आदि की बिक्री की जाती थी। इसके लिए जेल में एक विक्रय भण्डार बना था। जब सावरकर जी को जेल में रहते काफी समय हो गया, तो उनके अनुभव, शिक्षा और व्यवहार कुशलता को देखकर उन्हें इस भण्डार का प्रमुख बना दिया गया। इससे उनका सम्पर्क अन्दमान के व्यापारियों और सामान खरीदने के लिए आने वाले उनके नौकरों से होने लगा।
वीर सावरकर ने उन सबको भी हिन्दी सीखने की प्रेरणा दी। वे उन्हें पुस्तकालय की हिन्दी पुस्तकें और उनके सरल अनुवाद भी देने लगे। इस प्रकार बन्दियों के साथ-साथ जेल कर्मचारी, स्थानीय व्यापारी तथा उनके परिजन हिन्दी सीख गये। अतः सब ओर हिन्दी का व्यापक प्रचलन हो गया।
सावरकर जी के छूटने के बाद भी यह क्रम चलता रहा। यही कारण है कि आज भी केन्द्र शासित अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह में हिन्दी बोलने वाले सर्वाधिक हैं और वहाँ की अधिकृत राजभाषा भी हिन्दी ही है।
अन्दमान में हिन्दू बन्दियों की देखरेख के लिए अंग्रेज अधिकारियों की शह पर तीन मुसलमान पहरेदार रखे गये थे। वे हिन्दुओं को अनेक तरह से परेशान करते थे। गालियाँ देना, डण्डे मारना तथा देवी-देवताओं को अपमानित करना सामान्य बात थी।
वे उनके भोजन को छू लेते थे। इस पर अनेक हिन्दू उसे अपवित्र मानकर नहीं खाते थे। उन्हें भूखा देखकर वे मुस्लिम पहरेदार बहुत खुश होते थे। सावरकर जी ने हिन्दू कैदियों को समझाया कि राम-नाम में सब अपवित्रताओं को समाप्त करने की शक्ति है। इससे हिन्दू बन्दी श्रीराम का नाम लेकर भोजन करने लगे; पर इससे मुसलमान पहरेदार चिढ़ गये।
एक बार एक पहरेदार ने हिन्दू बन्दी को कहा - काफिर, तेरी चोटी उखाड़ लूँगा। हिन्दू बन्दियों का आत्मविश्वास इतना बढ़ चुका था कि वह यह सुनकर पहरेदार की छाती पर चढ़ गया और दोनों हाथों से उसे इतने मुक्के मारे कि पहरेदार बेहोश हो गया।
इस घटना से भयभीत होकर उन पहरेदारों ने हिन्दू बन्दियों से छेड़छाड़ बन्द कर दी। कारागार में मुसलमान पहरेदार हिन्दू बन्दियों को परेशानकर मुसलमान बना लेते थे। सावरकर जी ने ऐसे सब धर्मान्तरितों को शुद्ध कर फिर से हिन्दू बनाया।
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान के प्रबल समर्थक वीर विनायक दामोदर सावरकर का देहावसान 26 फरवरी, 1966 को हुआ था।
#हरदिनपावन
Monday, February 24, 2020
25 फरवरी/पुण्य-तिथिकाले कपड़ों वाले जनरल केदारनाथ सहगल
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में लाला केदारनाथ सहगल काले कपड़ों वाले जनरल के नाम से जाने जाते थे। 1896 में इनका जन्म लाहौर के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। माता-पिता ने इन्हें एक अच्छे और महँगे विद्यालय में यह सोचकर भर्ती कराया कि इससे इनका भविष्य उज्जवल बनेगा; पर वहाँ के प्रधानाचार्य स्वयं क्रान्तिकारी थे, अतः इनके मन में बचपन से ही देशसेवा की भावना घर कर गयी।
उस समय पंजाब में सरदार अजीत सिंह तथा सूफी अम्बाप्रसाद ‘भारतमाता संस्था’ के माध्यम से गाँव-गाँव घूमकर अंग्रेजों को भूमिकर न देने का अभियान चला रहे थे। 1907 में 11 वर्ष की अवस्था में ही केदारनाथ जी भी उसमें शामिल हो गये। 1911 में सशस्त्र कानून के अन्तर्गत इन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया। जेल जाने से इनकी इनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गयी; पर इन्होंने कुछ चिन्ता नहीं की।
1914 में इन्हें लाहौर में हुए एक काण्ड में अपराधी ठहराकर फिर गिरफ्तार किया गया। तीन साल तक चले मुकदमे के बाद इन्हें साढ़े चार साल की सजा देकर मुल्तान जेल भेज दिया गया। वहाँ से आते ही ये गांधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े।
उस समय ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की लाहौर कमेटी के महामन्त्री थे। 1920 में इन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक भारत स्वतन्त्र नहीं होगा, तब तक वे काले कपड़े ही पहनेंगे। तब से ही लोग इन्हें ‘काले कपड़ों वाला जनरल’ कहने लगे।
1921 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो उसके विरोध में पंजाब में भारी आन्दोलन हुआ। लाहौर में हुए विरोध कार्यक्रम में इन्होंने अपने साथियों सहित साइमन को काले झण्डे दिखाये। पुलिस ने भारी लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपतराय बहुत घायल हुए। वह चोट उनके लिए घातक सिद्ध हुई और वे चल बसे। आगे चलकर भगतसिंह और उनके साथियों ने इसका बदला सांडर्स को मौत की नींद सुलाकर लिया।
सांडर्स काण्ड में केदारनाथ जी को भी तीन साल की सजा हुई। इसके अतिरिक्त मेरठ षड्यन्त्र काण्ड में भी इन्हें पाँच साल सीखचों के पीछे रहना पड़ा। प्रयाग उच्च न्यायालय में अपील के बाद 1933 में ये रिहा हुए।
अपनी आवाज सामान्य जनता तक पहुँचाने के लिए इन्होंने ‘खबरदार’ तथा ‘उर्दू अखबार’ नामक दो समाचार पत्र प्रारम्भ किये। लाला लाजपतराय के अखबार ‘वन्देमातरम्’ के प्रकाशक भी यही थे। इन पत्रों में शासन की खूब खिंचाई की जाती थी। आन्दोलन के समाचारों के लिए लोग इनकी प्रतीक्षा करते थे।
शासन को ये अखबार फूटी आँखों नहीं सुहाते थे। अतः उसने इन्हें बन्द करा दिया। केदारनाथ जी ने अपने पूर्वजों की सारी सम्पत्ति बेचकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में लगा दी। उन्होंने अपने जीवन के कुल 26 साल अंग्रेजों की जेलों में बिताये। वहाँ इन्हें अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक प्रतारणाएँ झेलनी पड़ीं; पर इन्होंने झुकना या पीछे हटना स्वीकार नहीं किया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी केदारनाथ जी ने इस देशसेवा के बदले में कुछ नहीं चाहा। 25 फरवरी, 1968 को हृदयगति रुक जाने से इनका देहान्त हो गया। काले कपड़ों वाले जनरल के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इनके साथियों ने इनके कफन में भी काले कपड़ों का ही प्रयोग किया।
#हरदिनपावन
Sunday, February 23, 2020
24 फरवरी/बलिदान-दिवस*लोकदेवता कल्ला जी राठौड़*
Saturday, February 22, 2020
23 फरवरी/जन्म-दिवस*साहित्यकार सांसद डा. रघुवीर सिंह*
22 फरवरी/जन्मदिवस*यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त*
Friday, February 21, 2020
शिव और विज्ञान / शिव के तांडव नृत्य को अमेरिकन वैज्ञानिक ने परमाणुओं की उत्पत्ति से जोड़ा
हलधर नाग
Thursday, February 20, 2020
21 फरवरी/पुण्य-तिथिकित्तूर की वीर रानी चेन्नम्मा
Tuesday, February 18, 2020
19 फरवरी/जन्मदिवस*तपस्वी जीवन श्री गुरुजी*
Monday, February 17, 2020
18 फरवरी/बलिदान-दिवसअग्निधर्मी पत्रकार रामदहिन ओझा
Saturday, February 15, 2020
सप्रभातं
16 फरवरी/जन्म-दिवसमहाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 16 फरवरी, 1896 (वसंत पंचमी) को हुआ था। यह परिवार उत्तर प्रदेश में उन्नाव के बैसवारा क्षेत्र में ग्राम गढ़ाकोला का मूल निवासी था; पर इन दिनों इनके पिता बंगाल में महिषादल के राजा के पास पुलिस अधिकारी और कोषप्रमुख के पद पर कार्यरत थे।
इनकी औपचारिक शिक्षा केवल कक्षा दस तक ही हुई थी; पर इन्हें शाही ग्रन्थालय में बैठकर पढ़ने का भरपूर अवसर मिला। इससे इन्हें हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत तथा बंगला भाषाओं का अच्छा ज्ञान हो गया।
सूर्यकान्त को बचपन से ही विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएँ पढ़ने में बहुत आनन्द आता था। यहीं से उनके मन में काव्य के बीज अंकुरित हुए। केवल 15 वर्ष की छोटी अवस्था में उनका विवाह मनोरमा देवी से हुआ। इनकी पत्नी ने भी इन्हें कविता लिखने के लिए प्रेरित किया। इनके एक पुत्र और एक पुत्री थी; पर केवल 18 वर्ष की आयु में इनकी पुत्री सरोज का देहान्त हो गया। उसकी याद में निराला ने ‘सरोज स्मृति’ नामक शोक गीत लिखा, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है।
निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने हाथ के पैसे खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। एक बार किसी कार्यक्रम में उन्हें बहुत कीमती गरम चादर भेंट की गयी; पर जब वे बाहर निकले, तो एक भिखारी ठण्ड में सिकुड़ रहा था। निराला जी ने वह चादर उसे दे दी। उनकी इस विशालहृदयता के कारण लोग उन्हें महाप्राण निराला कहने लगे। निर्धनों के प्रति इस करुणाभाव से ही उनकी ‘वह आता, दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता…’ नामक विख्यात कविता का जन्म हुआ।
निराला ने हिन्दी साहित्य को कई अमूल्य कविताएँ व पुस्तकें दीं। उन्होंने कविता में मुक्तछन्द जैसे नये प्रयोग किये। कई विद्वानों ने इस व्याकरणहीन काव्य की आलोचना भी की; पर निराला ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। उनके कवितापाठ की शैली इतनी मधुर एवं प्रभावी थी कि वे मुक्तछन्द भी समाँ बाँध देते थे। यद्यपि उन्होंने छन्दबद्ध काव्य भी लिखा है; पर काव्य की मुक्तता में उनका अधिक विश्वास था। वे उसे नियमों और सिद्धान्तों के बन्धन में बाँधकर प्राणहीन करने के अधिक पक्षधर नहीं थे।
उस समय हिन्दी साहित्य में शुद्ध व्याकरण की कसौटी पर कसी हुई कविताओं का ही अधिक चलन था। अतः उनकी उन्मुक्तता को समकालीन साहित्यकारों ने आसानी से स्वीकार नहीं किया। कई लोग तो उन्हें कवि ही नहीं मानते थे; पर श्रोता उन्हें बहुत मन से सुनते थे। अतः झक मारकर बड़े और प्रतिष्ठित साहित्यकारों को भी उन्हें मान्यता देनी पड़ी।
काव्य की तरह उनका निजी स्वभाव भी बहुत उन्मुक्त था। कभी वे कोलकाता रहे, तो कभी वाराणसी और कभी अपनी पितृभूमि गढ़ाकोला में। लखनऊ से निकलने वाली ‘सुधा’ नामक पत्रिका से सम्बद्ध रहने के कारण वे कुछ समय लखनऊ भी रहे। यहीं पर उन्होंने ‘गीतिका’ और ‘तुलसीदास’ जैसी कविता तथा ‘अलका’ एवं ‘अप्सरा’ जैसे उपन्यास लिखे। उन्होंने कई लघुकथाएँ भी लिखीं। ‘राम की शक्ति पूजा’ उनकी बहुचर्चित कविता है।
अपने अन्तिम दिनों में निराला जी प्रयाग में बस गये। सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा और निराला के कारण प्रयाग हिन्दी काव्य का गढ़ बन गया। वहीं 15 अक्तूबर, 1961 को उनका देहान्त हुआ।